भूमि पर रेंगती मौत है मरुस्थलीकरण, लाखों लोगों की आजीविका छीन रही यह वास्तविकता

by Kakajee News

भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण, और सूखा प्रतिरोधकता। इस महत्वपूर्ण और चुनौती भरे विषय पर केंद्रित इस वर्ष का विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टीफिकेशन (यूएनसीसीडी) की पार्टियों का 16वां सम्मेलन रियाद में 2 से 13 दिसंबर तक होना है। इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में विश्व को भूमि की सुरक्षा व जलवायु परिवर्तन के सामने मरुस्थलीकरण और सूखे से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए कार्यवाही की तत्काल आवश्यकता को पहचानने का आह्वान किया गया है।
मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता व आजीविका के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं, जिससे पारिस्थितिक रूप से सुदृढ़ भूमि प्रबंधन प्रथाओं को अपनाना अनिवार्य हो जाता है। प्रत्येक बीते वर्ष के साथ, इन चुनौतियों से निपटने की तात्कालिकता और अधिक स्पष्ट हो जाती है, जिससे हमें उनके प्रभाव को कम करने के लिए सामूहिक प्रयासों के महत्व की अनुभूति होती है।

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संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित जितने भी अंतरराष्ट्रीय दिवस हैं, उनमें पर्यावरण दिवस ऐसा है, जिसे उत्साह और चिंतन के साथ मनाया जाता है। हमारे ग्रह के भूमि संसाधनों के लिए मरुस्थलीकरण सबसे घातक खतरों में से एक है, जो चुपचाप पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता और आजीविका पर अतिक्रमण कर रहा है। मरुस्थलीकरण वास्तव में भूमि पर रेंगती मौत है। एक बार यह जिस भूखंड पर रेंग जाता है, वह भूमि का मृत हिस्सा बनकर रह जाता है, वहां की मिट्टी सांस नहीं ले सकती, वहां कोई पौधा नहीं पनप सकता, वहां जीवन की खाद्य शृंखला टूट जाती है। मरुस्थलीकरण कोई यकायक घटी प्रलयंकारी घटना नहीं, वरन भूमि क्षरण की क्रमिक प्रक्रिया है, जिसमें वनस्पति की हानि, मिट्टी का क्षरण और जल संसाधनों की कमी सम्मिलित है। यह शुष्क, अर्ध शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में होता है, जहां जलवायु परिवर्तन और अस्थिर भूमि प्रबंधन प्रथाएं और शहरीकरण भूमि के क्षरण में योगदान करते हैं, जिससे मरुस्थलीकरण का प्रसार बढ़ता है।

मरुस्थलीकरण प्राकृतिक और मानवीय दोनों प्रणालियों को प्रभावित करते हैं। इससे पारिस्थितिक तंत्रों में जैव विविधता की हानि, मिट्टी की उर्वरता में कमी तथा सूखे और वनों की आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं की एक अटूट शृंखला शुरू हो जाती है। दुनिया भर के कई क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण एक कठोर वास्तविकता बन गया है, जिससे लाखों लोगों की आजीविका को खतरा है और सतत विकास के प्रयास कमजोर हो रहे हैं। विशेष रूप से अफ्रीका में विशाल भूमि मरुस्थलीकरण की निरंतर प्रगति का शिकार हो रही है। मरुस्थलीकरण की गंभीर वास्तविकताओं के बीच कार्यवाही के लिए आशा और अवसर उपलब्ध हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए एकजुट होकर काम करने का प्रयास किया है। 1994 में अपनाया गया यूएनसीसीडी इस दिशा में एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसका उद्देश्य स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं के माध्यम से मरुस्थलीकरण का मुकाबला करना और सूखे के प्रभावों को कम करना है। पुनर्वनीकरण और वनीकरण की पहल मरू भूमि को बहाल करने और मरुस्थलीकरण को कम करने, वन्यजीवों के लिए आवश्यक आवास प्रदान करने और कार्बन पृथक्करण लाभ प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि वानिकी, संरक्षण कृषि और एकीकृत जल प्रबंधन जैसी टिकाऊ कृषि प्रथाएं मिट्टी की उर्वरता में सुधार लाने, सूखे के प्रति लचीलापन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने में योगदान करती हैं।

स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना प्रभावी मरुस्थलीकरण शमन रणनीतियों का आवश्यक घटक है। निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और क्षमता निर्माण गतिविधियों में स्वदेशी समुदायों व छोटे किसानों सहित स्थानीय हितधारकों को सम्मिलित करके, हम विशिष्ट समाधानों को लागू करने के लिए पारंपरिक ज्ञान और विशेषज्ञता का उपयोग कर सकते हैं, जो मरुस्थलीकरण के मूल कारण का निराकरण करते हैं। मरुस्थलीकरण के विरुद्ध लड़ाई ऐसी नहीं है, जिसे रातोंरात जीता जा सके, बल्कि ठोस प्रयास, दृढ़ संकल्प और नवीनता के साथ हम धरा पर रेंगती मौत को मात दे सकते हैं।

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