बंदूक छोड़ी तो बदला जीवन, जिन हाथों से कभी बहाते थे खून, अब वही दिखा रहे हुनर, सरेंडर के बाद बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा में ले रहे हैं खास ट्रेनिंग

by Kakajee News

बीजापुर। जिन हाथों ने बरसों तक जंगल में रहकर लोगों का खून बहाया, परिवार उजाड़े, वही हाथ आज सोसायटी में हुनरमंद बन रहे हैं, इन हाथों से अपना परिवार पाल रहे हैं। बंदूक छोड़ी तो इन लोगों का जीवन बदल गया है। बस्तर संभाग में सरेंडर के बाद हुनरमंद बन रहे पूर्व नक्सलियों की जुबां से यही कहानी निकलती है। सरकार इन पुराने दुर्दात नक्सलियों को जिम्मेदार और आत्मनिर्भर नागरिक बनाने के लिए बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा में 90-90 लोगों के बैच में खास शिविर चला रही है।
इन शिविरों में कौशल प्रशिक्षण ले रहे लोगों के जीवन में बदलाव की कहानी जानने की कोशिश की गई। हुनरमंद बन रहे ये पुराने ‘लाल आतंकी’ आज की स्थिति से खुश हैं तो अतीत पर अफसोस भी जाहिर करते हैं। पूर्व पीएलजीए मेंबर सुकराम कहते हैं में पहले दूसरे राज्य में जाकर काम करता था। नक्सलियों ने गांव में आकर परिवार के लोगों को परेशान किया। कुछ मजबूरी कुछ उत्साह साह में मैंने संगठन जॉइन कर लिया। खून खराबा भी किया लेकिन बाद में लगा यह गलत है, सब छोड़ देना चाहिए। मैंने सरेंडर किया और अब राजमिस्त्री का प्रशिक्षण ले रहा हूं। परिवार की सुरक्षा की मजबूरी में सुकराम की तरह नक्सली संगठन जॉइन करने वाले और भी युवक शिविर में है।

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दरअसल, सरेंडर कर चुके इन लोगों को रोजगार प्रशिक्षण देने के लिए सरकार वही ट्रेड सिखा रही है जिनमें इनकी रूचि है, बाद में उन्हें आसानी से काम मिल सकता है। आइटीआइ और लाइवलीहुड मिशन के माध्यम से इन्हें अलग-अलग तरह के काम सिखाए जा रहे हैं।

बस्तर में नक्सलवाद का गढ़ कहे जाने वाले बीजापुर जिले की पहचान सिर्फ लाल आतंक के रूप में होती है। अब नक्सली हथियार छोड़कर लौट रहे हैं तो सरकार भी उनके लिए बहुत कुछ कर रही है। इसके पीछे एक ही सोच है कि

कौशल विकास ट्रेनिंग कैंप में 90 नक्सलियों को पहले चरण में ट्रेंड किया जा रहा है। सुबह पांच बजे योग के साथ दिन की शुरुआत होती है। दिनभर अलग-अलग कामों की ट्रेनिंग दी जाती है। साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत पढ़ाई करवाई जाती है। टीवी देखने का समय भी तय किया गया है। शाम का वक्त खेल-कूद के लिए तय रखा गया है।

बस्तर में लगाए गए विशेष कैंपों में पढ़ाई करते और राजमिस्त्री का काम सीखते पूर्व नक्सली
बेरोजगारी की वजह से वे वापस उसी दलदल में ना चले जाएं। लाल आतंक का दायरा सिमटने के बाद बदलाव की तस्वीर सामने आ रही है। इस पूरे प्रोजेक्ट के तहत एक स्पेशल ट्रेनिंग कैंप तैयार किया गया है।

ट्रेनिंग सेंटर में ऐसे नक्सली भी जीवन बदल रहे हैं जो संगठन में बम लगाने से लेकर हथियार बनाने तक का काम करते थे। ऐसे नक्सली खेती-किसानी, मवेशी पालन, मछली पालन जैसी चीजें भी सीख रहे हैं। उन्हें एक्सपोजर विजिट भी करवाया जा रहा है। अलग-अलग जिलों के संस्थानों में जाकर वे विशेष कामों को करीब से देख रहे हैं।

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